वह उसको मार मार कर थक चुका था पर उसका गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ था।
उनके आस पास की भीड़ चाहती थी कि वह उसको अभी और मारे।
वह थक चुका था, अब और मारने की हिम्मत नहीं थी। उसने पास में पड़ी कुल्हाड़ी उठा ली।
धीरे धीरे कदमों से उसके पास पहुंचा। सर की तरफ खड़ा हो गया, मार खाने वाला बेसुध पड़ा था।
उसने कुल्हाड़ी आसमान की ओर तान ली, एक क्षण के लिए रुका, भीड़ को निहारा, भीड़ ने मूक सहमति दे दी।
उसने दोनों भौहों के बीच निशाना बनाया और हाथ चला दिया। खटाक की आवाज आई, भीड़ ने ताली बजाई, भाग कर उसको अपने कंधों पर उठा लिया।
थियेटर तालियों से गूंज उठा, पर्दे पर The End लिखा आया। इस अमानुषिक काम में ना सिर्फ फिल्म के किरदारों की सहमति थी बल्कि फिल्म देखने वाले लोग भी इस से सहमत थे।
एक कहानी ने किसी के मर्डर को सामाजिक स्वीकृति दे दी थी।
हर दूसरी कहानी किसी मर्डर को जस्टिफाई करने के लिए लिखी जाती है।
जो बच्चा इन कहानियों को बचपन से देखकर, सुनकर बड़ा होता है वो किसी मर्डर के प्रति अचानक से विरोध में नहीं आ सकता। वो मर्डर के पीछे की कहानी जानना चाहता है फिर निश्चित करता है कि ये मर्डर सही है या गलत।
पिछले कुछ दिनों में कई पत्रकारों के मर्डर हुए हैं, जिनको लोगों ने जस्टिफाई करने की कोशिश की। मानव मन अभी भी फांसी जैसी सजा को सही ठहराता है।
यदि आपके मन में भी किसी को मार देने का विचार आता है, किसी के मर्डर को यदि आप जस्टिफाई करते हैं तो गलती आपकी नहीं है।
यह कहानियों- किस्सों, फिल्मों के द्वारा आपके अंदर भरे गए संस्कार हैं, धीरे धीरे ही खत्म होंगे।
जिस दिन खत्म होने लग जाएं समझ लीजिएगा कि आपके अंदर का इंसान जागने से पहले बाले अलार्म को सुन रहा है। थोड़ी सी चिढ़न होगी, होने दीजिएगा, अलार्म बंद मत करिएगा।